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Monday, April 6, 2020

MAIN AUR MERI TANHAI






मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं. .........  वाह -वाह क्या शायरी, क्या कमाल शब्द है,
हैं ना ? एक -एक शब्द अपना दर्द बयां कर रहा है।  आजकल लोगों के नसीब में तन्हाई के सिवाय  और रह  ही क्या गया है।
आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं  शायद  आपको गाना सुना रही हूँ,  जो  एक बहुत ही  प्रसिद्ध गीत है  अमिताभ बच्चन जी का उन्ही की एक फ़िल्म सिलसिला से 😊

तो नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है, मैं  आज सबकी ज़िन्दगी  की उस सच्चाई को लेकर चिंतित हूँ जो आजकल शायद सबकी ज़िन्दगी  का हिस्सा बन चुकी है.  जी हां  आप शायद समझ गए मेरा इशारा। वो है मोबाइल 📱📲📴📵

दोस्तों मोबाइल आजकल ज़रूरत और मुसीबत दोनों ही बन गया है ,जिसको देखो वही मुंडी नीचे डाले अपनी ही धुन  में पगलाया सा दिखता  है। माना कि आप  कुछ ज़रुरी काम कर रहे होते हैं  पर क्या वाकई वो काम सिर्फ मोबाइल पर ही हो सकता है ?पहले समय  में  जब हमारे दिमाग़  में कुछ सवाल हरक़त करता था तो हम दौड़ते थे और पहुँच जाते थे घर के सबसे होशियार व्यक्ति के पास ज़वाब ढूंढ़ने।  पर अब ऐसा नहीं  हैं, अब सब बुद्धिमान लोगों की जगह ले ले है इस google uncle ने।

आपको नहीं लगता की जानकारी देने तक तो ठीक है लेकिन इसने तो सारे रिश्ते-नाते छीन  के अपनी पोटली में डाल लिए हैं किसी  की आवश्यकता ही नहीं। इतना स्वार्थ, इतना अकेलापन !शायद कभी नहीं था जीवन में।  सब लोग एकांत चाहते हैं अपने जीवन  में  और इसी कारण  दफ़्तर से घर आते ही मोबाइल उठाया और लगे आँखे गड़ाए उसमे सुकून ढूंढने।  लेकिन अगर आप देखे तो आपका सुकून  इसने छीन  लिया है। मित्रो   एकांत और अकेलेपन में बड़ा अंतर होता है।  एकांत सुख की वो अनूभूति  है जहाँ आप जीवन में अपने बारे में सोच रहे होते हैं परमात्मा से वर्तालाप का प्रयोजन तलाश रहे होते है योग की मुद्रा में होते हैं।  और अकेलापन तो एक बीमारी है जो आपके अंदर अगर घर कर जाए तो  जीवन में बस तबाही निश्चित  है।


इसलिए अपने आस पास के जीवित प्राणियों से  संचार बढ़ाये  और मोबाइल का उपयोग तभी करें जब अत्यंत आवश्यक हो।


मैंने कुछ चंद लाइन इस कविता के रूप में भी लिखी हैं जो इस प्रकार है।
कृपया शब्दों  की गहराई पर ग़ौर कीजियेगा  :-

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

बस कैसे गुज़ारा  हो रहा है, मत पूछो।  
मोबाइल से ही रिश्ता प्यारा हो रहा है मत पूछो। 

रिश्ते हैं सब ताक पर, 
दिल एकाकी और तन्हाई का मारा हो रहा है। 

सोशल मीडिया पर हर ख़बर की ख़बर है। 
पर  अपनों में बंटवारा हो रहा है। 

और आप पूछ रहे हैं जनाब, 
कि कैसे गुज़ारा हो रहा है?

                               मत पूछो।।  vidhu chaudhary 


























Monday, March 30, 2020

RISHTON KA BAZAAR




दुनिया में  जिस पल हम कदम रखते हैं सबसे पहले अपने माता पिता और करीबी रिश्तेदारों का चेहरा देखते है। 
तब तक हम ये बिलकुल नहीं जानते कि कौन अपना और कौन पराया है. 
जैसे जैसे समय व्यतीत होता जाता है धीरे धीरे हमें रिश्तों की समझ आने लगती है और जीवन की गाड़ी चल निकलती है, दुनिया के इस चक्र्व्यूह  के रहस्य को समझने के लिए। जैसे जैसे आगे चलते हैं चक्र्व्यूह  टूटता जाता है और यहाँ हम अपने और पराये  की पहचान करने लगते हैं। 

कभी कभी तो अपने पूरे जीवन काल में भी हम नहीं समझ पाते कि कौन सा रिश्ता सच्चा है और कौन सा झूठा। इसी उधेड़बुन में हम अपनी  सारी ऊर्जा व्यर्थ में ही गवां देते हैं जबकि आजकल के इस  दौर में हर रिश्ता मतलबी हो गया है। 

भौतिकता के इस युग में जहाँ भाई  ही  भाई का हत्यारा हो गया हो और पैसे के  लिए जहाँ बच्चे  ही अपने माँ बाप की हत्या करने से या उन्हें बुढ़ापे में घर से बाहर निकाल देने  से नहीं हिचकते , उस दौर में  किसी से रिश्तो की वफादारी की उम्मीद रखना बेमानी है। हर एक रिश्ता एक कारोबार सा हो गया है।  सब अपना नफ़ा  नुकसान  देखते हैं।  अगर किसी रिश्ते में कोई फायदा दिखता है तो बात करो नहीं तो एक  झूठी  मुस्कान दिखा कर और नमस्कार   कर आगे बढ़ो।    

इसी लिए इस कविता के माध्यम से मैंने इस दर्द को समझाने का प्रयास किया है :-



रिश्तों के इस  कारोबार में 

झूठे  विज्ञापनों का बोल-बाला है,

जितना  झूठ  उतनी सफ़ेदी !

और हर झूठ  पर देखो हमने ,काला रंग चढाया है!

रिश्तों के इस कारोबार में... 

हर रिश्ते की नजर लालची 

भरोसे को गिरवी रख स्वार्थ का महल बनाया है

लो ! ख़रीद मुझे तुम, मैंने ऊंचा बोल लगाया है

               रिश्तों के कारोबार में हर कोई बिकता पाया है. vidhu chaudhary 



एक सयम था प्रभु राम का जिन्होंने अपनी माता के वचन का पालन करने के लिए घर त्याग था ,और एक अब ये  समय  है कि  माता पिता  के शब्दोँ का  कोई मूल्य ही है। आज कल  माँ बाप बोलने से पहले हज़ार बार सोचते है कहीं बच्चे को बुरा न   लग जाये ! वाह रे समय तेरी लीला अपरम्पार है।

मैं ये तो नहीं जानती कि वो समय ज़्यादा अच्छा था या बुरा, पर जो आज के दौर में रिश्तों का भिंडी बाजार बना है ये विषय काफ़ी चिंताजनक प्रतीत हो रहा है 

मुझे आज की पीढ़ी से सिर्फ एक ही प्रार्थाना   करनी है," कि कृपया करके आप लोग इतने स्वार्थी मत हो जाइए कि सारे रिश्तों को एक तरफ़ रख सिर्फ अपने लिए ही जीते रहे"
माना  कि हर रिश्ते में एक  दूरी ( space ) ज़रूरी  है लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि आप सबकुछ भूल जाये बड़ों को  सत्कार छोटों  को प्यार,  ये सब तो हम लोगों को बचपन से सिखाया जाता है  मुझे उम्मीद है की आप इतनी आसानी से अपने  बुनियादी ज्ञान  को जाने नहीं दे सकते। 


भूलिए नहीं कि अगर आप अभी जवां  हैं,तो अवश्य  ही कभी न कभी बूढ़े  भी  होने वाले हैं 
 जिस दौर  से आपके बड़े गुज़र रहे हें कल आपका भी वही  आना है।  इसमें से हर किसी को गुज़रना  है 
 यही जीवन का चक्र है



अगर  आपको मेरा प्रयास पसंद आये तो कृपया कमेंट लिख कर ज़रूर  बताएं। मेरे ब्लॉग को पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद् । 

Thursday, March 26, 2020

EK CHOTI SI SHARARAT





नमस्ते दोस्तों कैसे हैं आप उम्मीद है सुरक्षित हैं ना !आप सब लोग अच्छे से अपना ध्यान  रख  रहे हैं हैं ना ?न जाने क्या चल रहा है पूरा विश्व जाने किस  कम्बख़्त CORONA  नाम के ख़तरे से जूझ रहा है। भाई मैं तो काफ़ी  डर  रही हूँ न जाने क्या होगा ,कैसा होगा कल का दिन, न जाने क्या ख़बर  सुनने को मिलेगी ऊपर से LOCKDOWN , मतलब सोने पे सुहागा। भई  हम औरतें तो अच्छे से वाकिफ़ हैं इस लॉक वाली तकलीफ से ,आप भाई लोग बताओ ?कैसा लग रहा है घर मैं कैद होना ,मज़ा है या सज़ा हैं ? चलो ख़ैर  वक़्त  की बुरी मार तो पहले ही चल रही है मैं आप लोगों को और परेशान  नहीं करना चाहती। 
बस एक विनती है कि  इस समस्या को हल्के  मे न लेते हुए सरकार के साथ  कदम से कदम मिलाकर  ऐसे ही चलते रहिये। मुझे पूरा विश्वास  है जीत हमारी ही होगी।  और अब कुछ हल्का फुल्का हंसी मज़ाक हो जाये। आखिरआपको भी मेरी तरह समय गुज़ारने के लिए  कुछ न कुछ नए -नए हथकंडे  ढूंढ़ने पड़ रहे होंगे। 
 तो हुआ यूँ कि आज  मैं ऐसे ही अपनी कुछ पुरानी  PHOTO एल्बम निकाल के देख रही थी ,मेरी एक बचपन की फोटो मिली जिसमें मैंने रेड कलर के रिबन  लगा के दो -दो  चोटी बनायीं हैं। अभी तो एक के लिए भी बाल काम पड़ते हैं। .हहहा 🤣. फोटो के ऊपर  स्केच पेन से  बड़ा -बड़ा "तितली" लिखा हुआ है। मुझे ज़्यादा   देर नहीं लगी उस घटना  को याद करने में जब मेरा नाम तितली पड़ा था। 

तो जनाब हुआ यूँ की एक बार मम्मी - पापा किसी काम के सिलसिले मैं मुझे (आफत की पुड़िया को )  घर में अकेला छोड़  के चले गए। बहुत सारी चेतावनी देकर ,ऐसा नहीं की मैं  बिल्कुल  अकेली थी ,छोटी बहन और उससे छोटा भाई भी था। उस ज़माने में न्यूक्लियस  परिवार का प्रचलन तो था नहीं , सब लोग साथ रहा करते थे। कभी कभी तो गिनती करना भी मुश्किल हो जाता था कि  कितने लोगो का खाना बनेगा। 😄.... 

हाँ तो मैंने कुछ नयी खुराफ़ात  करने की सोची।  सोचा कि   आज़ादी को  बेकार  थोड़े   ही जाने दिया जा सकता है। उन दिनों बसंत ((SPRING) का मौसम था, घर के सामने खूब रंग बिरंगी तितलियाँ मँडराया  करती थी  ,बड़ा लुभावना रंग -रूप था उनका।  उनको पकड़ने के लिए उनके  पीछे -पीछे  तो मैं बहुत दिनों से डोला करती थी ,आज सोचा कि  क्यों ना उनके साथ ही उड़ने का प्रयास किया जाये। ..! हैरान हो गए न आप !

पर शायद बच्चोँ  के कल्पनिक मन के लिए ये  कोई बड़ी बात नहीं। .. हैं न बच्चो ? 😇

अब बारी थी  कल्पना को सच करने की," कि कैसे तितलियों की तरह उडा  जाये।।।  बहुत दिमाग़  लगा कर कुछ काग़ज  के रंग -बिरंगे पंख के आकार के काग़ज  काटे ,और उनको गत्ते पर चिपका दिया ,जितना भी गोंद  था सारा का सारा उड़ेल दिया था। आख़िर गिरने और मरने की भी तो फ़िक्र थी भई ! अब बारी थी कि कैसे शरीर जोड़ा जाये। बहुत सोचने के पश्चात् एक युक्ति ( TRICK )सूझी,फिर क्या था, सारी   तैयारी  पूरी कर मैं जा बैठी सबसे ऊँचे नीम के पेड़ पर जिसका तना थोड़ा झुका हुआ था। उस पेड़ पर चढ़ना मेरे बाएं हाथ का  खेल था। थोड़ी सी दिक़्क़त तो हुई, क्यूंकि मेरे ऊपर इतने सारे  बोरी  सिलने वाले धागे जो बंधे थे जो मेरे पंखों को सहारा दिए हुए थे. 

 मन में उड़ने की ख़ुशी इतनी थी की पूछो मत ,अब  बस गहरी साँस भर आँखों को मैंने बंद करके जो छलाँग लगाई रंगबिरंगी तितलियाँ ही थोड़ी देर बाद नजर सी आयी। 😇😆💫

आँखों के आगे अँधेरा सा छाया और मन में बस एक ही ख्याल  आया ? क्या ये सपना था या सच में मैं  ज़्यादा  ऊँची उड़ गयी हूँ आसमान में ?

धड़ाम की आवाज़ आयी और सब धूमिल सा लगने लगा । कुछ समझ नहीं  आ रहा था।  थोड़ी देर बाद जब कुछ समझ में आना शुरू हुआ तो  देखा ,  चारों  ओर  भीड़ थी, माँ माथे में त्योरियां डाले  घूर रही थी। हाथ में हल्दी वाला दूध का गिलास थमाकर  पैर पटककर बाहर चली गई ,बाबूजी ने आगे बढ़ थोड़ा ढाढस बंधाया । बोले कोई बात नहीं बेटा  कुछ ज्यादा नहीं कुछ दो चार हड्डी ही टूटी हैं ,जुड़ जाएगी जल्दी ही। .. बस कुछ चंद दिनों की बात है। दर्द से कराहते हुए मैं धीऱे - धीऱे मुस्कराने की कोशिश  करते हुए सोच रही थी की अभी तो माँ की मार भी बाकी  है। 
आंखों में आंसू लिए बाबूजी करीब आकर बोले दिल छोटा मत कर बिटिया, तू तो मेरी बहादुर सिपाही है ,क्या हुआ अगर सफ़ल नहीं हुई। हिम्मत मत हारना संघर्ष करने वालों की कभी हार नहीं होती। आज से सब मेरी बहादुर  बेटी को तितली 🦋के नाम से बुलाएँगे, समझे। ऐसा कहकर उन्होंने ज़ोर  का ठहाका😆 लगाया और मुझे प्यार से अपने गले लगा लिया. ...
तो ये थी मेरी छोटी सी  याद। ...अगर आपके लबों पे इसे पढ़ के थोड़ी सी मुस्कुराहट आयी हो तो मुझे ज़रूर बताइये ताकि में आपको आगे भी ऐसी कहानियाँ  सुना सकूँ. 
धन्यवाद्  .                                                                                














Wednesday, March 25, 2020

YAADON KI ALMARI

                                                                






एक दिन मुझे कपड़ों की तह में  दबी रखी माँ की एक  पुरानी  चिठ्ठी  मिली।  
सोचा क्या करूंगी अब  जब माँ ही नहीं है तो किससे पूछूं ?किस की  चिट्ठी है ?क्या लिखा होगा ? कुछ देर सोचती रही इधर - उधर घूमती रही।  एक मन किया  खोल लूँ , पर दूसरा मन करा रहा था नहीं । सब्र जब टूट गया  बच्चा  मन का रूठ गया।  ज़िद थी मन  कि बस एक बार देख लूँ हो सकता है कुछ मेरे लिए ही लिखा हो। ..ये बात कुछ समझ  में आयी  और फिर आखिर कांपते हाथों से लिफाफा खोल ही दिया। नीले रंग का अंतर्देशीय पत्र काफ़ी फटा - पुराना सा था, स्याही भी हल्की सी धूमिल हो रही थी  मैंने पढ़ना आरंभ किया। 
शीर्षक था :-"बस अब मैं  ऐसी ही हूँ  "



बस अब मैं  ऐसी ही हूँ,कभी अरमान था मेरा भी 
कि बन तितली  उड़ जाऊँ कहीं चमकूँ इस आसमान में
जब मेरे ये पंख नए थे, चमचम करते चमक रहे थे 
माँ बोली जा छिप जा बेटी, नज़र बुरी हैं जहां में
मत उड़ तू आसमान मैं
 मत उड़ आसमान में 

कल्पनाओं की ज़िन्दगी , चाहे जितने सुनहरे सपने सी ले, 
ऐसा कोई लिबास बना ले, जो बुरी नज़र से तुझे बचा ले. 

मैंने बाबा से एक अटैची मंगाई 
सारे सपने, सारी इच्छा रखती गई सम्भाल मैं  
थी बुरी नज़र इस जहान में.... 

ना खोल सकीं संदूक कभी, धीरे धीरे धूल चढ़ गई 
कल्पनाओं की उड़ान में 
थी बुरी नज़र इस जहान में.....
एक दिन सोचा आसमाँ की सैर पे जाऊँ
पंखों को खोल ज़रा अब मैं मुस्कुराऊँ 
पर अब ना सपना बचा ना उम्मीद 

डर से बैठ गयी इतनी कि  उड़ना भी  गई थी भूल 
गर बेटी तू मुझको कभी पढ़ पाए ,कभी यादों के संदूक  जो खुल जाये 

कभी न सपने बंद कर रख देना कहीं 
क्या पता क्या कभी लड़कियों  के लिए कुछ बदलेगा इस जहान  में 

या बुरी नज़र का डर  ऐसे ही सतायेगा
मेरी तरह क्या हर अरमान संदूक से ही निकला जायेगा ?


   



Monday, March 23, 2020

POWER OF POSITIVE THINKING (SAKARATMAK SOCH KE JADUIE PRABHAV )






दोस्तो ,आज का ये विषय आपको  थोड़ा जटिल ज़रूर लगेगा लेकिन जीवन में उन लोगों के अवश्य काम आएगा जो डॉक्टरों के चक्कर लगा -लगा के परेशान हो जाते हैं और समझ नहीं पाते कि उनके साथ ऐसा क्या हुआ है क्यों वो बीमार सा महसूस करते हैँ ?

ये तो आप सब अच्छे से जानते होंगे की हमारे मूड का प्रभाव हमारे शऱीर पर भी पड़ता है पर कितना ?
क्या आप जानते हैं कि  हमेशा ख़राब मूड मैं रहने से हमारा पूरा का पूरा बॉडी सिस्टम लड़खड़ा जाता है।

और जा जाने कितने शारीरिक और मानसिक रोग अपने पैर पसार  लेते हैं।
ख़ैर  मैं आपको  वो सब तो नहीं बता सकती  लेकिन इस समस्या का समाधान जरूर जानती हूँ।
कुछ करीब से देखा है मैंने ऐसे लोगों को जो अपने जीवन से ज़यादा संतुष्ट नहीं थे।

काफी समय तक उनके संपर्क मैं रहने के बाद आज मैं इस निष्कर्ष पर पहुँच कर कुछ चाँद लाइन आपके लिए लिख रही हूँ.
 मेरे कोशिश सिर्फ यही है कि आप इससे कुछ लाभ उठा पाएं और अपने जीवन को और भी  सुन्दर तरीके से जी सकें।

.

संतोष जीवन की वो कस्तूरी मणि है जो है तो आपके अंदर ही पर आप उसे हमेशा बाहर  ढूंढ रहे होते हो.उसी तरह से जैसे  कस्तूरी मृग सारे जंगल मैं उसकी खुशबू को तलाशते हुए  भटकता रहता है सारी  उम्र.

खुशियां जीवन में किस की   मोहताज है ? क्या आपने कभी सोचा है क्यों जीवन के सारे  सुख होते हुए भी आप खुश नहीं दिखाई देते। वो क्या चीज़  है जो आपको परेशां  कर रही होती है, ? तो इसका उत्तर है :-सोच

जीहां आपकी सोच आपके खुशियों का वो दरवाजा है जो संतोष नाम की चाबी से ही खुलता है। 
कहाँ वो डोर टूट गई थी सपनों की ,क्या वो वजह है जो आपको, न सोने दे रही ,न जागने। आपको सिर्फ ढूँढ़ना है दिल की गहराई में जाकर.
दोस्तो हम कुछ ना कुछ अपने भविष्य के सपने देखते हैं , कुछ लोग उन्हें पहचान जाते हैं और पूरा करने में जुट जाते हैं.  

वहीं  कुछ लोग जान ही नहीं पाते कि उनको ज़िंदगी से क्या चाहिए ... 
और बस चल देते हैं बिन अड्रेस मंजिल ढूँढने . 
ऐसा नहीं कि सभी लोग, लेकिन कुछ ख़ास ,वो लोग जो भावुक प्रकृति (emotional) के  होते 
हैं , वो ही गुमशुदा (lost from aim ) कहलाते हैं .
भावुक  होना हमेशा आपके आड़े आता है, क्यूँकि आप सिर्फ "कोई बुरा ना मान जाए " इसी दुविधा में फंसे रहते हो और लोग आपसे अपना "उल्लू  सीधा" करके चलते बनते हैं.







आपकी विचारधारा अगर नकारात्मक है तो आपके शरीर  के पूरे सिस्टम्स को प्रभावित कर देती है.तो अगर आप एक स्वस्थ जीवन की तलाश कर रहे हैं तो   भूलिये  नहीं  की आप भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने बाकि लोग। 
जीवन  में आगे बढ़ना हो तो निराशा की लाठी फेंक दें इससे आप ज़यादा दूर नहीं चल पाएंगे। बस.... 
 अपने सपनो की ज्योत   जलाइए और बिना किसी सहारे का इंतजार किये बस चल पड़िए मंज़िल की ओर। 




अब आप मेरी इस कविता पे  ज़रूर गौर फरमाए  शायद ये भी आपकी कुछ मदद कर पाए। 








                                                                                                                                   
                                                                                           

                                                                                 




Friday, March 20, 2020

EK BAAR GALE LAGA LO

          "A POEM OF FEELING "    




आशाओं के रथ में बैठी कल्पित झूला झूल रही थी,  नरम-नरम सी सेज पे लेटी अपने सपनों में डोल रही थी।  न कुछ पाया था - ना कुछ खोने का डर था ,बड़ा ही मदमस्त ग़र्भ का ये सफर था ! कभी जूस तो कभी फल - फ्रूट, न जाने क्या-क्या मेन्यू बदल रहा थाआखिर  मेरी मां का पांचवा महीना  जो चल  रहा था !वह लोरी सुनाना और कोमल से स्पर्श से सहलाना, और ना जाने कितने सपने मां को बुनते  देख रही थी प्यार और सानिध्य की बेल सी, मैं ख़ूब  फल फूल रही थी, 


हाँ मैं अभी भी आशाओं के रथ में बैठी कल्पित झूला झूल रही थी   

फिर एक दिन अचानक न जाने कहाँ से एक भारी -भरकम आवाज सी आई,
"गिरवा दो" इसे यह तो कम्बख़्त फिर से लड़की है भाई !
डर के मारे माँ और मेरा दिल था सिमट गया    
धड़क-धड़क के आपस में था जैसे लिपट गया। 
हम आपस में जो बंधे हुए थे सांसों की डोर से सिले हुए थे  
उस दिन, न जाने क्या हुआ होगा यह तो मैं ना देख थी  पाई 
पर मां की रोने की आवाज से नींद मेरी खुल गई भाई। 
मां कुछ ऐसा सा  बोल रही थी," चाहे घर से बाहर निकालो, चाहे मुझको भूखा मारो।
यह तो  मेरी जान है, ईश्वर का वरदान है  इसे ना मारो , इसे न मारो" 
    
आज ना पकवान, ना जूस, नाही लोरी  ना कुछ फ्रूट।  
उस दिन से मुझे कुछ कम में रहने और सहने की सीख मिली, 
तानों से परेशान हो माँ ने कसके फिरएक चपत लगाई थी
बोली "कमबख्त क्यों तू मेरे ही नसीब में आई थी ! "   
कहते-कहते मां फूट पड़ी थी, मैं भी थोड़ा टूट गई थी।  
सोचा थोड़ा गुस्सा करके एहसास कराऊँ भूखी हूं ,  
मैंने कसके जब लात लगाई  तो मां  ज़ोर से थी चिल्लाई 
चीख सुनकर दादी आई ,उसने माँ को इक डांट लगाई। 
भूख से  बिन खाए मां की तबीयत बिगड़ रही थी, मैं भी अंदर सिकुड़ रही थी। 
                                              
माँ को चक्कर आया था और यहीं से जिंदगी में हम दोनों के एक नया 'ट्विस्ट' आया था !                                   
मैं अनचाही और मां मनहूस नामों की सरताज हो गई 
और यहीं से दुनिया में मेरी भी शुरुआत हो गई.........            
सतरंगी दुनिया का ठाठ बङा निराला था 
बस बच्चे के जन्म की खुशियों का रंग ही काला था। 

शब्दः नहीं थे लबों पे मेरे ,
पर दिल की रफ्तार तेज़ थी 
क्या यहि मेरे स्वागत की सेज थी? 
कैसे मैं माँ को समझाती, काश मैं  उस पल  कुछ बोल पाती। 
जब तूने मुझे "गिरते" हुए बचाया था, तभी मेरे  मन में एक विचार आया था
कि व्यर्थ नहीं जाने दूंगी तेरा बलिदान, चाहे देने पडें कितने भी इम्तिहान। 
सोच रही हूँ सबको समझा दूँ , बात पते की उन्हें बता दूँ ,
कि ढोल नगाड़े बजे न बजे ,थोड़ी जगह बना लो भाई 
खुशियों से मैं घर भर दूँगी ,मुझको तुम अपना लो भाई 
मुझको तुम अपना लो भाई।....   

                                                                                                                                    










Wednesday, March 18, 2020

MY MOTIVATION



वास्तविक जीवन में आप ही समझते है कि किस सांचे में आपकी जिंदगी की पटरी चल रही है.

मैं भी हमेशा यही सोचा करती थी और उलझी रहती थी अपने ही सवालों मैं...उन सवालों में जिनका जवाब मुझे लगता था कि  होगा ही नहीं। 
दोस्तो, एक बात तो सच है कि अगर आपके दिल मैं कुछ चल रहा है तो सामने वाले से पूछने में कोई बुराई नहीं है, हो सकता है कि उसका जवाब ना  में हो, लेकिन हाँ भी तो हो सकता है?....! लेकिन जब तक आप पूछेंगे नहीं तब तक तो लाज़मी ना ही है 👈

एक दिन मुझे बहुत उदासी सी हो रही थी ,तो मैंने अपनी घर के कौने मैं बनी लाइब्रेरी मैं हाथ डाल ही दिया ये सोचकर कि चलो कुछ समय काटती  हूं...  😴

कुछ किताबें इधर उधर की देखने के बाद मुझे एक कविताओं की पुस्तक मिली जो कि विभिन्न कवियों के विचारों का संग्रह था|
सभी ने बहुत ही खूबसूरती से अपने ज़ज्बात बयां किए हुए थे... मैं बस पढ़ती गई और खोती गई  कवियों की कल्पनाओं में|
एक से बढ़कर एक जज्बात लिखे थे, शब्दों के गहन अर्थ लिखे थे |
कुछ ने दिल खुशनुमा कर दिया और किसी ने मेरा  दिल दुखा दिया.
मेरा दिल थोड़ा उदास तो था ही और मैं कुछ इंस्पिरेशनभी  ढूंढ रही थी तभी किसी शायर की सिर्फ चार  लाइन की शायरी पर नज़र पड़ी, पहले तो कुछ ख़ास नहीं लगी फ़िर मैंने दोबारा गहन( Intensive)  अध्ययन किया. 
क्या आप विश्वास कर पाएंगे कि इस शायरी ने मेरी जिंदगी  सच बदल  दी|
सच में बहुत खूब 👌 लिखा था शायर ने :-


"तकदीर के खेल से निराश नहीं होते,
जिंदगी में ऐसे कभी उदास नहीं होते,
हाथों की लकीरों पर क्यों भरोसा करते हो,
तकदीर उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते"।



मैं  भी बहुत ज्यादा पंडित और ज्योतिषियों में विश्वास किया करती थी और अपने परिवार का और अपना भला बुरा पूछने के लिए अक्सर जाया करती थी |
जैसे ही मैंने ये तस्वीर देखी, मैं मानो  शून्य 
हो गई.! यूं ही काफी देर  इस तस्वीर को घूरती रही और देखते ही देखते ना जाने कब आंखें नम हो गई 🥺 प्रेरणा ऐसी ही होती है, ना जाने कब आप रोशनी की किरण बन जाएं किसी के लिए। 

और अब कुछ चलते चलते :-
                                                          दुश्मनी लाख सही, कभी ख़त्म न कीजिए रिश्ता
                                                            दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए।                
                                                                                                                                                 विधु चौधरी 








MAIN AUR MERI TANHAI

मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं. .........  वाह -वाह क्या शायरी, क्या कमाल शब्द है, हैं ना ? एक -एक शब्द अपना दर्द बयां ...