मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं. ......... वाह -वाह क्या शायरी, क्या कमाल शब्द है,
हैं ना ? एक -एक शब्द अपना दर्द बयां कर रहा है। आजकल लोगों के नसीब में तन्हाई के सिवाय और रह ही क्या गया है।
आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं शायद आपको गाना सुना रही हूँ, जो एक बहुत ही प्रसिद्ध गीत है अमिताभ बच्चन जी का उन्ही की एक फ़िल्म सिलसिला से 😊
तो नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है, मैं आज सबकी ज़िन्दगी की उस सच्चाई को लेकर चिंतित हूँ जो आजकल शायद सबकी ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुकी है. जी हां आप शायद समझ गए मेरा इशारा। वो है मोबाइल 📱📲📴📵
दोस्तों मोबाइल आजकल ज़रूरत और मुसीबत दोनों ही बन गया है ,जिसको देखो वही मुंडी नीचे डाले अपनी ही धुन में पगलाया सा दिखता है। माना कि आप कुछ ज़रुरी काम कर रहे होते हैं पर क्या वाकई वो काम सिर्फ मोबाइल पर ही हो सकता है ?पहले समय में जब हमारे दिमाग़ में कुछ सवाल हरक़त करता था तो हम दौड़ते थे और पहुँच जाते थे घर के सबसे होशियार व्यक्ति के पास ज़वाब ढूंढ़ने। पर अब ऐसा नहीं हैं, अब सब बुद्धिमान लोगों की जगह ले ले है इस google uncle ने।
आपको नहीं लगता की जानकारी देने तक तो ठीक है लेकिन इसने तो सारे रिश्ते-नाते छीन के अपनी पोटली में डाल लिए हैं किसी की आवश्यकता ही नहीं। इतना स्वार्थ, इतना अकेलापन !शायद कभी नहीं था जीवन में। सब लोग एकांत चाहते हैं अपने जीवन में और इसी कारण दफ़्तर से घर आते ही मोबाइल उठाया और लगे आँखे गड़ाए उसमे सुकून ढूंढने। लेकिन अगर आप देखे तो आपका सुकून इसने छीन लिया है। मित्रो एकांत और अकेलेपन में बड़ा अंतर होता है। एकांत सुख की वो अनूभूति है जहाँ आप जीवन में अपने बारे में सोच रहे होते हैं परमात्मा से वर्तालाप का प्रयोजन तलाश रहे होते है योग की मुद्रा में होते हैं। और अकेलापन तो एक बीमारी है जो आपके अंदर अगर घर कर जाए तो जीवन में बस तबाही निश्चित है।
इसलिए अपने आस पास के जीवित प्राणियों से संचार बढ़ाये और मोबाइल का उपयोग तभी करें जब अत्यंत आवश्यक हो।
मैंने कुछ चंद लाइन इस कविता के रूप में भी लिखी हैं जो इस प्रकार है।
कृपया शब्दों की गहराई पर ग़ौर कीजियेगा :-
दोस्तों मोबाइल आजकल ज़रूरत और मुसीबत दोनों ही बन गया है ,जिसको देखो वही मुंडी नीचे डाले अपनी ही धुन में पगलाया सा दिखता है। माना कि आप कुछ ज़रुरी काम कर रहे होते हैं पर क्या वाकई वो काम सिर्फ मोबाइल पर ही हो सकता है ?पहले समय में जब हमारे दिमाग़ में कुछ सवाल हरक़त करता था तो हम दौड़ते थे और पहुँच जाते थे घर के सबसे होशियार व्यक्ति के पास ज़वाब ढूंढ़ने। पर अब ऐसा नहीं हैं, अब सब बुद्धिमान लोगों की जगह ले ले है इस google uncle ने।
आपको नहीं लगता की जानकारी देने तक तो ठीक है लेकिन इसने तो सारे रिश्ते-नाते छीन के अपनी पोटली में डाल लिए हैं किसी की आवश्यकता ही नहीं। इतना स्वार्थ, इतना अकेलापन !शायद कभी नहीं था जीवन में। सब लोग एकांत चाहते हैं अपने जीवन में और इसी कारण दफ़्तर से घर आते ही मोबाइल उठाया और लगे आँखे गड़ाए उसमे सुकून ढूंढने। लेकिन अगर आप देखे तो आपका सुकून इसने छीन लिया है। मित्रो एकांत और अकेलेपन में बड़ा अंतर होता है। एकांत सुख की वो अनूभूति है जहाँ आप जीवन में अपने बारे में सोच रहे होते हैं परमात्मा से वर्तालाप का प्रयोजन तलाश रहे होते है योग की मुद्रा में होते हैं। और अकेलापन तो एक बीमारी है जो आपके अंदर अगर घर कर जाए तो जीवन में बस तबाही निश्चित है।
इसलिए अपने आस पास के जीवित प्राणियों से संचार बढ़ाये और मोबाइल का उपयोग तभी करें जब अत्यंत आवश्यक हो।
मैंने कुछ चंद लाइन इस कविता के रूप में भी लिखी हैं जो इस प्रकार है।
कृपया शब्दों की गहराई पर ग़ौर कीजियेगा :-
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बस कैसे गुज़ारा हो रहा है, मत पूछो।
मोबाइल से ही रिश्ता प्यारा हो रहा है मत पूछो।
रिश्ते हैं सब ताक पर,
दिल एकाकी और तन्हाई का मारा हो रहा है।
सोशल मीडिया पर हर ख़बर की ख़बर है।
पर अपनों में बंटवारा हो रहा है।
और आप पूछ रहे हैं जनाब,
कि कैसे गुज़ारा हो रहा है?